काश साल में 11 महीने ही रह जाएं, कैलेंडर से फरवरी सदा सदा के लिए मिट जाए। फरार हो जाओ मेरे वतन से फरवरी हमें तुम्हारी चाह नहीं। जब भी आई हो तुम सुहानी सूरत लेकर खून से लथपथ हुई है मेरे वतन की सड़कें अमन में दखल की तस्वीर हो तुम फरवरी जाओ चली जाओ फरवरी अब ना आना इस देश।
2002 में जब तुम आई थी तो हमने गोधरा देखा, साबरमती एक्स्प्रेस का जलता डिब्बा, कराहते रामभक्त, रोते, बिलखते, झुलसते, तड़पते, जिस्म से जान निकलते, आदमी से लाश बनते, दर्द के कोहराम, अश्कों के सैलाब, नफरत की आंधी, खून की होली लेकर वो तुम ही आई थी ना, फरवरी क्या तुम्हें याद नहीं? हां 27 फरवरी ही थी वह जब निहत्थे, निरीह रेलगाड़ी के कोच नंबर एस सिक्स में सवार 90 लोगों को जिंदा लाश बना दिया गया था। अभी तो हे फरवरी तुम्हारे मनहूसियत की झलक भर देखी थी हमने पंद्रह सौ से ज्यादा पागल लोगों के एक झुंड ने साबरमती ट्रेन के गोधरा स्टेशन से चलते ही एक डिब्बे को पेट्रोल छिड़क आग के हवाले कर दिया जिसमें राम नाम के मतवाले सवार थे। यह सफर शुरू तो आदमियों ने किया था पर बदकिस्मती से खत्म उनकी लाशों से हुआ था। इस एक डिब्बे की आग की लपटे देखते-देखते गोधरा से पूरे गुजरात में पसर गई और कत्लोगारद का मंजर आम हो गया, आग लगाने वाले तो साजिशन कहीं छुप गए और गांधी का शहर जल उठा। इस हिंसा के नंगे नाच के आंकड़े बोलते हैं एक हज़ार चौवालिस लोगों को वह फरवरी लील गई। गोधरा का कलंक आज भी जिंदा है, जिसके कारण हिंदुस्तान शर्मिंदा है। यहां भी धर्म को मानने, जानने, पहचानने वाले एक दूसरे के लहू से प्यास बुझा रहे थे। धर्म ही गोधरा में नफरत की वजह, मौत का इश्तिहार बना। तिलक और टोपी के बीच के उन्माद ने इंसानियत को जो जख्म दिया उस वेदना से उबर पाना इंसानियत के बूते की बात ना रही। बात बस इतनी कह गए अटल बिहारी वाजपेयी के राजधर्म का पालन होना चाहिए था।
14 फरवरी 2019 तुम्हें हम हिंदुस्तानी भुलाये भुला नहीं सकते, सरहद की सुरक्षा के लिए मां भारती के प्रहरी देश के मुकुट जम्मू की ओर बढ़ रहे थे, बसों का काफिला खड़ा था। मौत से बेखबर जवान अगले आदेश का इंतजार कर रहे थे, सच वो इस बात से अनजान थे कि जिंदगी अब अगला पल ही नहीं देगी।काफिले के करीब दूर से आती एक कार बदहवास बढ रही थी, मानो उसका निशाना साफ था, मंजिल करीब और लक्ष्य को पाने के लिए बेताब वह कार एक चिंहित बस से जा टकराई फिर बस... बस न रही। वो बस मलबे के ढेर, आग के शोले, उड़ते, बिखरते, जलते, कराहते जिस्म के टुकड़ों का अंबार बन गई।कहते हैं कार से टकराने के बाद हुए धमाके की आवाज से मीलों दूर बैठे परिंदे भी दहशत में आ गए, जमीन उस जलजले से हिल गई, आसमां खूनी लाल हो गया, कोहराम चरम पर चरमरा रहा था। हंसते खेलते बतियाते साथियों का पलक झपकते आस से लाश बन जाना सैनिको को मंज़ूर न था। बिछुड़ने वालों की तलाश हड़कंप बन गई, दोस्तों ने एक दूसरे को ढूंढने के लिए हथियार संभाला, कदम बढ़ाया तो हिल गए किसी का बूट मिला तो किसी का पैर मिला, किसी की घड़ी तो किसी का शरीर का साथ छोड़े दिखा, किसी का धड़ था तो कहीं दूर गर्दन दिखी, कार बस से अकेले नहीं टकराई थी कहते हैं करीब तीन सौ किलो विस्फोटक कार मे भरा पड़ा था। इतने बड़े जलजले के साथ आतंकवादी आदिल अहमद डार ने कार से टक्कर मारी तो दहशत भी रो उठी कोहराम भी कांप उठा और मौत मातम बन नाच उठी। ये कहर, ये दर्द, ये मौत का तांडव, ये लाल लहू का दरिया ये फरवरी ही थी। देश के चालीस वीर जवान मां भारती के चरणों पर एक साथ फिदा हो गए, शहीद हो गए, जां निसार कर गए। वो दुनिया से विदा हो गए पर घाव अभी जिंदा है। फिर एक बार फरवरी ये तू ही है ना... तेरी हिम्मत तो देख तू अपने खूनी मंसूबे लेकर देश के दिल दिल्ली तक चली आई, जमुना की धारा को चीर चित्कार ले आई, मौत को बाहों में समेट तू दिल्ली पर बरस गई, देख कर लाशों की गिनती, कर जलते घरों की दीवारों का दीदार, हिम्मत है तो देख सड़कों पर पड़े ईंट पत्थर के टुकड़ों को, निहार आँख खोल के लाठी-डंडे गोलियों की बौछार ,औजार, हथियारों के जखीरे... देख तो गुलेल तेजाब बम के कारखाने सामने हैं। किस-किस का हवाला तूझे बता कलम रो पड़ी है, आंखें बरस रही हैं... मरने वालों में सच में मेरा कोई सगा नहीं था, पर सब के सब मेरे थे, हां मेरे दिल्ली वाले थे... मेरी ही तरह, गरीब, बेरोजगार रोटी रोजी की तलाश में दिल्ली आए मजबूर, मजदूर, मजलूम, लाचार थे, इस मलबे में इस लड़ाई में कभी कोई बड़ा नेता का घर नहीं जला, भीड़ उस तक कभी नही पहुंची, कोई ईंट रोड़े का तुकड़ा भी उस तक पहुंचने की हिमाकत न का सका। कमजोर कायर मौत जो भूखा रोटी की तलाश मेें निकला तूने उसे ही अपने आगोश में ले लिया। जो खाली जेब था उसे कफन की सौगात दे दी, जो अकेला था उससे तू भीड़ की शक्ल में भिड़ गई। जो घरों में छुप कर चुप बैठ गया उसे ही जला दिया। इन बेरहम आतंकी मौत के सौदागरों को वर्दी का भी खौफ़ न रहा। इन दरिंदो ने दो पुलिस के जवानों की जान ले ली और एक आला अधिकारी ज़िंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं। श्मशान, कब्रिस्तान दोनों इनकी करतूत से गुलजार हैं। अस्पतालों में अपनों को देखने वालों की लंबी कतार है, इस दर्द की जननी इस मातम की अम्मा फरवरी तू ही तो है... तू चली जा फिर कभी ना आने के लिए।
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